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- Know What Is Non-public Member Invoice, Sudhakar Can Additionally Seek files from Foyer Division On This, Bihar Files, Patna Files
पटना7 मिनट पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
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बिहार विधान सभा की फाइल फोटो।
बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विधायक और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह मंडी व्यवस्था की मांग के साथ प्राइवेट मेंबर बिल बिहार विधान सभा के शीतकालीन सत्र में लाने वाले हैं। यह बिहार विधान सभा में 1978 के बाद लाया जाना वाला पहला प्राइवेट मेंबर बिल होगा। यानी 44 साल बाद कोई विधायक प्राइवेट मेंबर बिल ला रहे हैं। सुधाकर सिंह नीतीश-तेजस्वी सरकार में कृषि मंत्री थे और उन्होंने मंडी व्यवस्था लागू करने, किसानों के अनाज एमएसपी के तहत खरीदने और अनाज खरीद में पैक्स के साथ ही अन्य कंपनियों को भी मौका देने की मांग सरकार से की थी। लेकिन सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी।
आखिरकार उन्होंने विभाग के अंदर इसको लेकर पीत पत्र लिखा। लेकिन सुधाकर अपने तीखे बयानों और कड़ी कागजी कार्यवाहियों की वजह से नीतीश कुमार के निशाने पर आ गए। लालू प्रसाद ने सुधाकर सिंह को इस्तीफा देने को कहा और सुधाकर ने कृषि मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अब मंत्रिमंडल से बाहर रहकर भी वे मुखर हैं। वे जो प्राइवेट मेंबर बिल ला रहे हैं वह क्या है इसे जानिए-
प्राइवेट मेंबर बिल, सरकारी बिल से कैसे अलग है?
सरकारी बिल (Governmental Invoice) और प्राइवेट मेंबर बिल (Non-public Member Invoice) में अंतर है। प्राइवेट मेंबर्स बिल कोई भी सांसद संसद में या विधायक विधान सभा मे पेश कर सकता है। सरकारी बिल को सरकार का समर्थन होता है जबकि प्राइवेट मेंबर बिल के साथ ऐसी बात नहीं है। विधान सभा में प्राइवेट बिल को लेकर फैसला विधान सभा अध्यक्ष करते हैं। अभी बिहार विधान सभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी हैं। हालांकि अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें दल निरपेक्ष माना जाता है लेकिन बता दें वे आरजेडी के कोटे से ही इस अध्यक्ष पद पर आए हैं।
नियम यह है कि विधान सभा अध्यक्ष प्राइवेट मेंबर बिल पेश होने की अनुमति देने के बाद उसकी समीक्षा के लिए विभाग (सरकार) को भेजते हैं। जब वहां से अनुमोदन मिल जाता है तब उसे सदन के पटल पर रखने की अनुमति दी जाती है। विधान मंडल के दोनों सदनों यानी विधान सभा और विधान परिषद् से अनुमोदित होने और राज्यपाल के अनुमोदन के बाद ही कोई बिल या विधेयक कानून बनता है। इसके लिए प्राइवेट मेंबर बिल को बहुमत से पास होना जरूरी है।
प्राइवेट मेंबर बिल का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी भी मेंबर की हो होती है। इसे वे खुद तैयार करते हैं। भास्कर के पास जानकारी है कि सुधाकर सिंह ने इसका पूरा ड्राफ्ट तैयार किया है।
प्राइवेट मेंबर बिल पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
बिहार विधान सभा के पूर्व निदेशक भूषण कुमार झा से हमने बतौर एक्सपर्ट बात की। वे कहते हैं कि प्राइवेट मेंबर बिल सरकार के इतर कोई भी विधायक चाहे तो विधान सभा में ये बिल दे सकते हैं और आग्रह कर सकते हैं कि इस पर चर्चा हो। बिहार विधान सभा में मैंने अपने कार्यकाल में नहीं देखा कि ऐसा कोई बिल आया या पास हुआ। लेकिन बिहार विधान सभा संचालन नियमावली में प्राइवेट मेंबर बिल लाने का प्रावधान है।
इसके ड्राफ्ट में साफ-साफ लिखना होगा कि विधि सम्मत हो तो इसे स्वीकार किया जाए। अगर बहुमत से ये पारित होगा तो राज्यपाल के यहां भेजा जाता है। राज्यपाल अपनी स्वीकृति अगर दे देते हैं तो सरकार के विधेयक के रूप में इसका महत्व होता है।
सुधाकर सिंह इसे वापस लेंगे, ऐसा नहीं लगता
विधान सभा में इस पर चर्चा हो जाने के बाद सरकार के मंत्री के अनुरोध पर सुधाकर इसे वापस भी ले सकते हैं या आगे बढ़ने का विकल्प चुन सकते हैं। सुधाकर सिंह सरकार के मंत्री के अनुरोध के बावजूद प्राइवेट मेंबर बिल को वापस लेंगे, ऐसा नहीं लगता! किसानों के सवाल पर वे लगातार मुखर हैं। बल्कि वे चाहेंगे कि विपक्ष और सरकार में से कौन-कौन से विधायक किसानों से जुड़े बिल पर उनके साथ खड़े रहते हैं, यह जनता भी देखे! सत्ताधारी पार्टी के बाकी विधायक साथ नहीं देंगे तो वे एक्सपोज होंगे ! सुधाकर सिंह इस पर वोटिंग यानी लॉबी डिवीजन की भी मांग कर सकते हैं।
1978 के बाद कोई प्राइवेट बिल नहीं आया विधान सभा में
बिहार में आजादी के बाद से अब तक 113 प्राइवेट मेंबर बिल पेश हुए हैं। वर्ष 1953 में तो 15 प्राइवेट बिल विधान सभा में लाए गए थे। 1955 और 1963 में 11-11 प्राइवेट बिल लाए गए थे। 1978 में 2 प्राइवेट बिल लाए गए। 1978 के बाद से कोई प्राइवेट बिल बिहार विधान सभा में नहीं लाया गया। यानी 44 साल बाद कोई प्राइवेट मेंबल बिल बिहार विधान सभा के इस शीतकालीन सत्र में लाया जा रहा है।