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पटना4 घंटे पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
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गणितज्ञ आनंद कुमार
पद्म पुरस्कारों की घोषणा भारत सरकार ने की है। बिहार से गणितज्ञ आनंद कुमार, पेपरमेसी की कलाकार सुभद्रा कुमारी और टेक्सटाइल से जुड़े कलाकार कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। आनंद कुमार पटना में रहते हैं। सुभद्रा देवी सलेमपुर, मधुबनी की रहने वाली हैं और कपिलदेव प्रसाद बसवनबीघा, नालंदा के रहने वाले हैं।
अनेक गरीब बच्चों को आईआईटी में सफलता दिलवायी आनंद कुमार ने
आनंद कुमार अपने शिक्षण संस्थान सुपर 30 के लिए चर्चा में रहे हैं जहां उन्होंने ऐसे बच्चों को आईआईटी की तैयारी करवायी को निर्धन थे। उनकी मदद से अनेक बच्चों ने बेहतर मुकाम हासिल किया। आनंद कुमार पर सुपर 30 फिल्म भी बन चुकी है जिसमें रितिक रौशन ने आनंद का किरदार निभाया। देश-विदेश के कई बड़े शिक्षण संस्थानों में आनंद लेक्चर दे चुके हैं। खुद आनंद ने अपनी पढ़ाई काफी मुश्किलों के बीच शुरू की।
वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव कुमार बताते हैं कि आनंद जमीन से जुड़े हुए प्रतिभाशाली व्यक्ति रहे हैं। गरीबों के लिए शिक्षा का बड़ा अवसर खोला। बचपन में पापड़ बेचकर आनंद कुमार ने पढ़ाई की। खुद आर्थिक तंगी की वजह से आईआईटी नहीं कर पाए लेकिन कइयों को आआईटी में सफलता दिलाई। हर बड़े काम की शुरुआत एक छोटे कदम से होती है यह आनंद ने दुनिया भर को दिखाया। आनंद कुमार की मां जयंती देवी ने काफी संघर्ष कर आनंद कुमार को पढ़ाया था।
पेपरमैसी कला को पहचान दिलायी मधुबनी की सुभद्रा देवी ने
सुभद्रा देवी, पेपरमैसी की आर्टिस्ट हैं। रहनेवाली तो वे सलेमपुर, मधुबनी की हैं लेकिन इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं। पेपरमैसी की कला कागज को पानी में फुलाकार और उसे कूटकर तैयार की जाती है। कला समीक्षक अशोक कुमार सिंहा बताते हैं कि सुभद्रा देवी के मायके मनिगाछी, दरभंगा में परंपरागत रूप से पेपरमैसी का निर्माण होता था। देखा-देखी बचपन में वे भी चुल्हा, गुड़िया और अन्य कलाकृतियां बनाने लगीं।
इस दौरान दर्दमैदा पेड़ की छाल छीलकर उसे सुखाते थे और फिर उसे कूट-पीटकर पाउडर बनाया जाता था। बाद में मेथी से बनाने लगी। अब कागज या गत्ते को छोटे-छोटे टुकड़ों को पीनी में भिंगोकर उसकी लुगदी तैयार करते हैं और फिर उसमें फेवीकॉल, गोंद आदि मिलाकार आटे की तरह सानते हैं। इसके बाद उससे मनचाही मूर्तियां बनाकर धूप में सुखाते हैं और फिर रंग करते हैं। हालांकि इसे जम्मू- कश्मीर का शिल्प माना जाता है लेकिन इसका विकास मिथिलांचल में भी खूब हुआ।
पेपपमैली कला को पहचान दिलाने वाली सुभद्रा देवी।
बावन बूटी के कलाकार कपिलदेव प्रसाद
कपिलदेव प्रसाद टेक्सटाइल से जुड़ी बावन बूटी से जुड़े कलाकार हैं। बिहार के नालंदा जिला का बसवन विगहा गांव इसका मुख्य निर्माण सेंटर रहा है। इसे लूम के खड़े तानों से तैयार करते हैं। बुनक इसके बाना पर काम करते हैं। साड़ी या पर्दा आदि पर सौन्दर्य के 52 भावों को उभारा जाता है। माना जाता है कि बावन शब्द भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा है।
वामन अवतार लेकर भगवान विष्णु ने पूरे जग को नाप लिया था इसलिए छह गज की साड़ी या चादर आदि में पूरी सृष्टि को उभारने की परंपरा रही है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति को इस कला से खूब प्यार था। उन्होंने बावन बूटी के चादर, परदा आदि राष्ट्रपति भवन में लगवाया था।